जो बचपन में गांव की-
सोंधी माटी खाने से मिलता था।
हालांकि किसी कारणवश
जल्दी हो जाए छुट्टी स्कूल की,
लेकिन मजा तो लंच में-
भागने में ही आता था।
यूं तो आज बाईक से-
घूम लेते हैं यहां से वहां,
लेकिन मजा तो टायर से सारे गांव-
के चक्कर लगाने में ही आता था।
मामूली सी बात पर टूट जाते हैं
अब रिश्ते,
तब रोज लड़ के भी खेलने में मजा
एक साथ ही आता था।
मां कहती थी कि खाना तो खाता जा,
भागते हुए ये कहना कि अभी आता हूं
और फिर पूरे दिन गुम हो जाता था।
पैसे से अमीर तो नहीं, पर हां
दिल से बड़े अमीर थे। क्योंकि
पास गर एक टॉफी हो तो उसे भी-
बांटकर खाने में मजा आता था।
खेलते वक्त चोट भी आ जाये तो
तो बहते खून को तुरंत-
माटी लगाकर रोकना बखूबी आता था।
अब तो सुबह-शाम मिल जाती है
स्वादिष्ट सब्जियां,
लेकिन तब चटनी से खाने में भी-
गजब का स्वाद आता था।
भले ही अब रोज ज्यूस पी लेते हैं
लेकिन तब एक केला भी कोई-
रिश्तेदार आने पर मिल पाता था।
आज दोस्त बोलते हैं अच्छा लिखते हो
लिखने में मजा तो आता होगा-
मैं अक्सर कहता हूं लिखने में तो आता है
लेकिन उससे ज्यादा मुझे मेरी औकात
याद करने में आता है।
क्योंकि समय-समय पर औकात याद कर ली जाए
तो इंसान, इंसान बना रहता है।
#बस_यूं_ही
✍🏻-विकास
2 comments:
Sahi..h sir💞
Thanks dear
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