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Friday 1 May 2020

एक मजदूर, मजबूर भी

एक मजदूर, मजबूर भी !!

🙏🙏 कृपया समय निकालकर पढ़िएगा
अगर आपको मेरे द्वारा लिखे शब्दों में जरा भी सच्चाई लगे तो अपने दिल में सम्मान रखिए उन मजदूरों के लिए जो खुद झुग्गी या कच्चे मकान में रहकर हमारे लिए पक्क़ा मकान बना जाते हैं, उन मजदूरों के लिए जो हमारे लिए मखमल बनाकर खुद जमीन पर सो जाते हैं।
🙏🙏
#InternationalLabourDay #MayDay

सभी लोग संदेशों के माध्यम से मजदूर दिवस की बधाई दे रहे हैं लेकिन वास्तविक मजदूरों की दशा देखकर समझ नहीं आ रहा मैं बधाई दूं या ना दूं......,✍️
मजदूर का कोई धर्म, कोई जात नहीं होती उसकी पहचान मजदूर और कर्म मजदूरी होती है लेकिन आप एक सवाल के द्वंद्व में होंगे कि मजदूरी, मजबूरी कैसे...?
मेरे नज़रिए से बताने की कोशिश करता हूं जो कार्य व्यक्ति को पसंद ना हो फिर भी उसे करना अतिआवश्यक हो जाए तो वह मजदूरी नहीं, मजबूरी है।
वैसे तो सरकारी या गैर सरकारी विभागों में काम करने वाले सभी मजदूर ही हैं लेकिन मेरी कविता एक ऐसे मजदूर की है जिसे आप बखूबी समझ सकते हैं।
उम्मीद है आपको लेख पसंद आएगा।
पढ़िएगा…📖

जीना चाहता हूं मैं भी शहंशाहों की तरह,
पर उससे पहले जीने के लिए रोटी जरूरी है
ना ही जमीन है ना ही कोई व्यवसाय है-
दो बच्चे और बीवी है वह भी असहाय है
काफी ढूंढा शहर में पर कोई काम ना मिला
थक हार के आ गया वापस दिल को आराम ना मिला,
किसी ने कहा कुछ तो करना जरूरी है
तुम्हारे लिए सबसे बढ़िया मजदूरी है-

तीन सौ रूपए दिहाड़ी मजदूरी करने लगा
मजदूरी न करता तो भी क्या करता साहब
पेट में रोटी खानी जो जरूरी थी
बस इस काम को करना यही मेरी मजबूरी थी

दिहाड़ी से रोटी का बंदोबस्त तो हो जाता था
लेकिन बीवी बच्चों के चेहरे की मुस्कान अधूरी थी
मेरे लिए उनका खुश रहना जरूरी था
कर्जा ना लेता तो क्या करता साहब यह भी मजबूरी था।

तुम्हारे लिए जो झुग्गी झोपड़ी थी उसे मैं घर कहता हूं,
रेलवे लाइन के पास का वो एरिया जहां मैं रहता हूं
बच्चों का दाखिला एक सरकारी स्कूल में करवा दिया,
निजी स्कूल के बच्चों को देख वह भी लालायित होते थे
शाम को मेरे बाजू में बैठ जी भर के रोते थे।
मैंने कहा बेटा वे पैसे वाले लोग हैं यह उनकी अदाकारी है,
हम दिहाड़ी मजदूर हैं हमारे लिए बेहतर स्कूल सरकारी है।

एक दिन मैं स्कूल में गया , मास्टर ने कहा.......

बच्चे बड़े होशियार हैं इन्हें आगे पढ़ाना जरूरी है,
साहब कैसे पढ़ाऊंगा कॉलेज में मेरा तो पेशा मजदूरी है
एक दिन बीवी बीमार थी इलाज कराना जरूरी था,
लेकिन शाम के भोजन के लिए काम पर जाना जरूरी था
मैं काम पर पत्थर तोड़ रहा था और घर बीमारी बीवी का शरीर....
दो दिन से मैं अतिरिक्त काम करता था पैसे इकट्ठे करने के लिए
तब तक मैं रकम जोड़ पाया उससे पहले बीवी विदा हो गई
अब कैसे कहूं मेरे लिए यह जीवन जरूरी है
साहब मैं तो कहता हूं जीना भी मजबूरी है।

मां के जाने के बाद बच्चे हताश हो गए,
लेकिन दूसरे दिन इम्तिहान में बच्चे पास हो गए,
बच्चे उच्च शिक्षा के लिए बड़े शहर गए
आंसू हर दिन निकलते थे वो भी सूखकर ठहर गए।
खुशी यह है कि बच्चे शहर में पढ़ रहे हैं
और गम यह कि मैं अब अकेला हूं(बीवी भी चल बसी)

बस उम्मीद है वें जल्द ही लौटेंगे,
मजदूर के बच्चे ही सही मगर-
कुछ ना कुछ बनकर लौटेंगे !!
इन्हीं उम्मीदों के साथ कर रहा हूं मजदूरी
क्योंकि रोटी खाना तो आज भी है जरूरी
यही काम है मेरी मजदूरी और मजबूरी

बच्चों की ख्वाहिशें भूलकर पत्थर तोड़ना जरूरी होता है
शरीर बीमार हो तो भी काम करना जरूरी होता है,
दबी रह जाती हैं पत्थरों के नीचे मासूमों की ख्वाहिशें-
इसलिए कहता हूं मजदूरी का नाम, मजबूरी भी होता है।
#InternationalLabourDay #MayDay
#1stMay #अंतरराष्ट्रीय_मजदूर_दिवस #मजदूरदिवस

✍️-विकास

District Collector and District Magistrate Of Alwar (Rajasthan)

OCTOBER 2022 Currently IAS/DM(District Magistrate) Of Alwar(Rajasthan) -   Dr Jitendra Kumar Soni डॉ. सोनी अलवर से पहले NHM(Nati...